Tuesday, October 7, 2008

निन्दा रस पिपासु
हम çारम्भ से ही परनिन्दा-रस-पिपासु हैं। निन्दा करने में व परनिन्दा सुनने में जो सुख है, सकल निन्दावेŸााओं के मुताबिक वो सुख नाही राम भजन में, वो सुख नाहिं अमीरी में। हमारी प्रसéता सदैव दुसरे की अप्रसéता पर डिपेण्ड करती है और वो हमेशा लाशों पर कबìी खेलने की फिराक में रहती है। हम अपने पूर्वजों ¼बन्दरों½ के संस्कारों को कैसे छोड़ सकते है, जिसमें किसी ’बया’ का आशियाना उजाड़ना बड़ा सुखकर होता है। मैं कई ऐसे परमनिन्दावेŸााओं को जानता हूँ जो ’क’ के सामने ’ख’ की निन्दा करते हैं और ’ख’ के सामने ’क’ की और इसका जो परिणाम मिलता है वो यह है कि ये सुबह ’क’ के घर चाय पीते है और शाम को ‘ख‘ के साथ पनीर पकोड़े खाते हैं। विरोधियों की निन्दा सुनकर जो मजा आता है वो एक विद्वान के मुताबिक ‘‘ना मदिरा के चषक में है ¼इसका सरलार्थ दारू की सिप के रूप में भी किया जा सकता है½ ना नर्तकियों के नादमय पदन्यास में है और ना ही अप्सराओं के आवेगपूर्ण आलिंगन में हैं।‘‘ राजनीति में विरोधियों की निन्दा, विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। आलाकमान के सामने उनके ही विरोधी की निन्दा कर कई प्रतिभाशाली निन्दामनीषी म्यूनिसपाल्टी के मेम्बर से लेकर पार्लियामेन्ट के मेम्बर बन चुके हैं। कुछ निन्दाविज्ञों और रसज्ञों के अनुसार निन्दा भी कई प्रकार की होती हैं। पहली ‘अकाम निन्दा’। ये निन्दा बिना किसी काम के, लोभ व लालच के की जाती है। यह निन्दा स्वभावगत होती है। यह रä को बढ़ाने वाली व वीर्यवद्र्धक होती है। इससे âदय को बल मिलता है व स्नायु तंत्र मजबूत होता हैं।दूसरी होती है ‘सकाम निन्दा’। यह निन्दा सçयोजन की जाती है, ठीक उसी çकार जिस çकार अविवाहिता इक्कीस सोमवार व विवाहिता करवा चौथ करती है। इस प्रकार निन्दकों के शरीर में विशेष कट~स निकल जाते हैं, जो çाचीन काल में योगियों और वर्तमान में जिम जाने वालों के निकलते हैं। सकाम निन्दा करने वालों में प्राय: एक शिष्ट व विशिष्ट प्रकार का कमीनापन पाया जाता है। तीसरे प्रकार की निन्दा होती है ‘कर्Ÿाव्यीय निन्दा’। इस निन्दा की दो शाखाएँ होती है, पहली ‘सरकारी’ स्तर पर,दूसरी ‘विरोधियो’ के स्तर पर। सरकारी स्तर पर की जाने वाली निन्दा में एक शब्द ‘घोर’ जुड़ा होता है, जिसे सरकारी लिपि में ‘घोर निन्दा’ कहा जाता है। इस प्रकार की निन्दा से, जो निन्दा कर रहा है उस पर व जिसकी की जा रही है उस पर, दोनों के स्वास्थ्य पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता। ठीक उसी çकार जैसे विŸा व योजना आयोग के क्रियाकलापों से भिखारियों पर, कानून के होने या न होने से अपराधियों पर व संसद के होने या न होने से गरीबों के चूल्हे की बुझी आग पर काई प्रभाव नहीं पड़ता। दूसरी है, विरोधियों द्वारा की जाने वाली निन्दा। इसमें निन्दा परम कर्Ÿाव्य व मूल अधिकार है। ये विरोधियों की पाचन क्रिया में ‘ईसबगोल की भुस्सी’ का कार्य करती है। सरकार चाहे बैंगन का भुरता बनाये या दाल Ýाई हमें तो बस निन्दा करनी है।निन्दा में एक विशे’ा çकार का रस होता है। इसमें विशेष çकार के çोटीन, विटामिन व लवण पाये जाते हैं जो सेहत को तन्दुरूस्त रखते है। निन्दा करने से हेल्थ बनती हैं। अगर आपको कोई स्वस्थ व बलिष्ठ व्यäि मिल जाये तो समझो कि निन्दा करके ही सेहत बनाई है। निन्दकों को वानरराज बाली की तरह वरदान çाप्त है, उसके सामने जो भी आयेगा उसका आधा बल बाली में आ जायेगा। निन्दा से ’हेल्थ’ व ’वेल्थ’ दोनों मिलती है। बाली को ’हेल्थ’ मिली व उसके बिरादर सुगzीव को बाली की निन्दा रामजी से करने पर ’वेल्थ’ मिली। निन्दा से मोक्ष व परमानन्द की प्राप्ति होती है। इसीलिए सूरदास जी ने कहा है, ’’निन्दा सबद रसाल’’ संजय झाला श्याम निकेतन,संगम विहार नई मण्डी रोड़ दौसा

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